काशी का घाट मनोरम।
घूमूँ मैं बन बंजारा
अरु जीवन का दृश्य विहंगम
जिसको सबने स्वीकारा।।
गली गली नित नई कहानी
दुनिया जिसकी दीवानी
सबके अपने भाव सुनहरे
सबका अपना दरबारा
है काशी का घाट मनोरम
घूमूँ मैं बन बंजारा।।
घाट घाट गंगा का पानी
कबीर तुलसी मानस वाणी
शिक्षा, संस्कृति ज्ञान है सुंदर
जिसने जग का रूप सँवारा
है काशी का घाट मनोरम
घूमूँ मैं बन बंजारा।।
जीवन का संगीत यहाँ है
कण कण बसती प्रीत यहाँ है
भोर सुहानी साँझ मनोहर
जीवन मरण मोक्ष का द्वारा
है काशी का घाट मनोरम
घूमूँ मैं बन बंजारा।।
अपनी धुन में मस्त बनारस
माटी माटी कण कण पारस
जीने के तो लाख ठिकाने
मौत सजे वो शहर बनारस
माया मोह लोभ से उठकर
बस गाता जाये इकतारा
है काशी का घाट मनोरम
घूमूँ मैं बन बंजारा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06जुलाई,2021