अधरों पर प्रतिबंध अनेकों।
शब्दों पर पहरे हैं गहरे
किरणों का पथ रोक रहे हैं
काले काले मेघ घनेरे
अँधियारों ने बैठाए हैं
दीपक पर लाखों पहरे
अंतस के सागर में देखो
ऊँची ऊँची उठती लहरें
अधरों पर प्रतिबंध अनेकों
शब्दों पर पहरे हैं गहरे।।
जाने कैसी चलन चली है
आडंबर सब अच्छे लगते
चमक दमक वाला जीवन
पलकों को सच्चे लगते
बैठ सादगी किसी किनारे
भरती है साँसें गहरे
अधरों पर प्रतिबंध अनेकों
शब्दों पर पहरे हैं गहरे।।
प्रश्नों से जा कह दो कोई
महलों के दरबार न जाएं
अपनी राह बुहारें खुद ही
खुद ही अपना पंथ बनाएं
दरबारों की अनदेखी से
वरना घाव मिलेंगे गहरे
अधरों पर प्रतिबंध अनेकों
शब्दों पर पहरे हैं गहरे।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22जून, 2021
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