लेखनी से मनुहार।
आह मेरी लेखनी फिर
प्रेम का नव गीत लिख दो
भावनाओं का समर है
आज तुम नव रीत लिख दो।।
पँक्तियों ने गीत गाये
पलकों की अंगड़ाइयाँ में
प्रीत ने नव रीत पाये।
अंक में श्रृंगार भर दो
रास की नव रीत लिख दो
आज मेरी लेखनी फिर
प्रेम का नवगीत लिख दो।।
आस का आकाश हो फिर
मधुर मधुर एहसास हो फिर
मौन फिर से गीत गाये
अरु मोक्ष का आभास हो फिर।
फिर मौन को बोल दे दो
मोक्ष की नव रीत लिख दो
आज मेरी लेखनी फिर
प्रेम का नवगीत लिख दो।।
पोर पोर पुलकित हो जाये
साँस साँस नव जीवन पाये
पीर पीर को धाम मिले अरु
अंग अंग सुरभित हो जाये।
रोम रोम मधुमास जगे
प्रीत की वो रीत लिख दो
आज मेरी लेखनी फिर
प्रेम का नवगीत लिख दो।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जुलाई, 2021
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