प्रणय भाव।

प्रणय भाव।  

मेरे सूने अंतर्मन पर सुधि बनकर छा जाता 
ऐसा कोई होता जो प्रणय भाव समझा जाता।।

पलकों में अपने भर करके नवल नेह का काजल
आँचल में अपने भरकर के आशाओं के बादल
स्मृतियों के सूनेपन को हौले से सहला जाता
ऐसा कोई होता जो प्रणय भाव समझा जाता।।

कभी सजाता सपन सलोने कभी आस की ज्योती
कभी मधुर मधुमास जगाता कभी प्रेम के मोती
नैनों की चितवन से फिर नूतन राह दिखा जाता
ऐसा कोई होता जो प्रणय भाव समझा जाता।।

मूक वेदना को स्वर देता श्वाशों में मृदु कंपन
अधरों पर मुस्कान जगाता दे हौले से चुंबन
मधुर स्वरों में गीत सजा अंतस को बहला जाता
ऐसा कोई होता जो प्रणय भाव समझा जाता। 

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24मई, 2021


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