एक हस्ताक्षर।

एक हस्ताक्षर।  

कितने लम्हे ठहरे होंगे
और खुद ठगा पाया होगा
जब कागज के चंद पुलिंदे
भावों के ऊपर छाया होगा।

कागज के उस संधी पत्र पर
बेमन हो हस्ताक्षर किया होगा
बंद कमरे में उस एक पल में
आँसू का घूँट पिया होगा।

इक छोटे से हस्ताक्षर ने
पल में क्या से क्या कर डाला
जो भूगोल बदल सकता था
पल ने इतिहास बदल डाला।

क्या से क्या हो गया गगन में
क्षण भर सूरज छुपा गगन में
कहीं विजय की पटकथा लिखी
कहीं चोट खाया अंतर्मन में।

क्षण भर को दिल धड़का होगा
शोला मन में दहका होगा
स्मरण शहादत का जब आया
खुद पर कितना भड़का होगा।

देखा होगा कहीं आइना
कैसे नजर मिलाया होगा
अपने भीतर उठे क्षोभ को
किस तरह से दबाया होगा।

सीमा पर जो लहू गिरा है
उसका कैसे मान करूँगा
पत्नी, माँ, बहनों को बोलो
कैसे अब आश्वासन दूँगा।

क्या बोलूँगा जन गण मन को
ये सोच सोच विक्षिप्त हुआ
उस क्षण जो कुछ घटित हुआ था
उससे खुद वो अतृप्त हुआ।

उलझन के उस क्षण वो खुद को
कितना तनहा पाया होगा
जाने कितने भाव हृदय में
अपने पलते पाया होगा।

दुविधा के इस भँवरजाल में
पीड़ा मन की बढ़ती जाती
पल पल जैसे बीत रहा था
उसकी छाती फटती जाती।

उस एक पल ने सदियों बाद
फिर चक्रव्यूह को था देखा 
और भोर की किरणों ने फिर
अभिमन्यू को गिरते देखा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03जुलाई, 2021




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