पाप पुण्य तोलना क्या।
मुक्त कर अपने हृदय को जग के मोहपाश से।।
पुष्प डाली से गिरे जब कौन है फिर पूछता
आँख से ओझल हुए फिर कौन किसको सोचता
अंक में जो प्रेम है सब वो छणिक उन्माद है
जो है छणिक उन्माद तो क्यूँ इसे तू खोजता।।
तूने पाया क्या यहाँ जिसका तू खंडन करे
अरु लाया ही क्या यहाँ जिसका तू मंथन करे
प्रस्थान के इस क्षण में छाया कैसा व्योम है
पथ तेरा जो भूल गए व्यर्थ तू चिंतन करे।।
जिंदगी के शुभ पलों का तुमने अभिवादन किये
शोक के भी पलों में बस प्रीत का वादन किए
हर पलों की निज व्यथा को तुमने पलकों में सहा
आह, कंठ चाहे थे रुँधे पर तुमने बस वंदन किये।।
ताप के अंतिम क्षणों में साँझ शीतल हो रही
स्निग्ध लौ की भूमिका से रात उज्ज्वल हो रही
है क्षितिज नजदीक जब और आगे बोलना क्या
मुक्त हुए बंधनों से पाप पुण्य तोलना क्या।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29जून, 2021
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