नवा जमाना कइसा।
नउके लरिके सूट चढ़ाई के खूब करें मनमानी।।
चूल्हा फूँकत उमर गइल निकलल आँखिन के पानी
नई बहुरिया गैस पे भी अब करत हौ आनाकानी।।
खेत गयल खलिहान गयल अउ छूटल सब बाग बगइचा
छूट गयल पगहा गोरु के ई नवा जमाना कइसा।।
खेते डांडे जात न केहू गोड़ में लागे चेंहटा
ऊसर बनत जात अब खेतवा दोष लगावें केहका।।
घरे में जब जब झगड़ा भयल बा बँटल खेत खलिहान
बइठ दुआरे अइया बाबा झंखइ पकरि पकरि के कान।।
जइ लरिका तइ चूल्हा होइगा अब बुढवन जाई कहाँ
थरिया के भाँटा बनि माई बाबू लुढकइ इहाँ उहाँ।।
गाँव गाँव के इहे कहानी दोष लगावइ केहका
ई नवा जमाना कइसन आइल बिगड़त हैं सब लरिका।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07जून, 2021
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