व्याकुल मन।
क्यूँ व्याकुल हो रहा चित्त और मौन पड़ा क्यूँ साज।।
कितनी गहरी दुनिया तेरी
थाह कहाँ से मैं पाऊँ
कैसे समझूँ दर्द तेरा मैं
और तुझे क्या समझाऊँ।।
तुम ही बोलो मौन हुआ क्यूँ पपीहे का वो राग
क्यूँ व्याकुल हो रहा चित्त और मौन पड़ा क्यूँ साज।।
कई बार टकराया तुझसे
पर राज समझ ना आया
कितने ही पल तुझे पुकारा
पर पास तुझे ना पाया।।
कैसा दर्द मिला है तुझको ये मुझे बता दो आज
क्यूँ व्याकुल हो रहा चित्त और मौन पड़ा क्यूँ साज।।
नैनों के कोरों पर कितनी
तरल तरंगें विचलित हैं
भावों को कहने को कितनी
मौन लकीरें मुखरित हैं।।
आज मुखर हो मुझसे कह दो तुझमें छिपा जो राज
क्यूँ व्याकुल हो रहा चित्त और मौन पड़ा क्यूँ साज।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25मई, 2021
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