अंतस में जो भी भाव बने
गीतों में उसको गाता हूँ
जग से जो भी भाव मिले
हँस करके दिखलाता हूँ।।
कविता हो या गीत कहीं
सब मेरे मन की बातें हैं
तन मन जिसमें भींग रहा
सब अंतस की बरसातें हैं।
नैनों से जो अश्रु बहे हैं
चुपके से बहलाता हूँ।
अंतस में जो भी भाव बने
गीतों में उसको गाता हूँ।।
स्मृतियों में है शेष वही
जो आरोप लगाया है
तुमने कहा ठगा है मैंने
पर तुमने ठुकराया है।
स्मृतियों से पर प्रेम मुझे
उनसे दिल बहलाता हूँ।
अंतस में जो भी भाव बने
गीतों में उसको गाता हूँ।।
जब छोड़ चले सारे अपने
शिकवा मैं तुमसे क्या करता
एकाकीपन का घाव लिए
मैं जीवन जीता या मरता।
एकाकीपन की पीड़ा को
मैं शब्दों से पिघलाता हूँ।
अंतस में जो भी भाव बने
गीतों में उसको गाता हूँ।।
अब और नहीं कोई चाहत
गीतों का बस संग रहे
नित गीत सुनाऊं मैं सबको
खुद से चाहे जंग रहे।
अपने इन गीतों में ही
अब जीवन सारा पाता हूँ।
अंतस में जो भी भाव बने
गीतों में उसको गाता हूँ।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13अक्टूबर,2020
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