भोर का स्वागत करो।
भोर की पहली किरण
जब धरा पर आयी
सिंदूरी रंग रँगी धरती
नव बेला मुस्काई।
पनघट पर पंछी चहके
नभ में लाली छाई
आलस्य के बादल छंटे
तन मन में स्फूर्ति आयी।
शीतल-शीतल मंद पवन ने
जीवन की बगिया महकाई
बाग-बगीचे सब झूम उठे
खेतों में फसलें लहराईं।
दूर शिवाला की ॐ ध्वनि
नव चेतना जगाती है
सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर
एहसास यही दिलाती है।
नई सुबह है, नया जोश है
नवजीवन अलबेला है
त्याग शैथिल्यता स्वागत करो
ये नवप्रभात की बेला है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18 मार्च, 2020
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