बंद दरवाजे।
बोलो किससे बाहर आऊँ
द्वार द्वार पर बंदिश लाखों
कैसे मैं छुटकारा पाऊँ।।
छोटे छोटे यहाँ झरोखे
धूप कहीं है छाँव कहीं है
खोलूँ किसको बंद करूँ मैं
सूझ रहा कुछ दाँव नहीं है।
राह बता अब तू मन मेरे
कैसे मैं छुटकारा पाऊँ
जीवन के अगणित दरवाजे
बोलो किससे बाहर आऊँ।।
लाख जतन था किया यहाँ पर
अभी तक बाहर आ न पाया
कितना जोर लगाया फिर भी
स्वयं को पर समझा न पाया।
किंतु परंतु के संवादों से
कैसे मैं छुटकारा पाऊँ
जीवन के अगणित दरवाजे
बोलो किससे बाहर आऊँ।।
कब तक कैद रहूँ इस घर में
कब तक खुद मैं को समझाऊँ
कब तक द्वार तकूँ मैं बोलो
कब तक प्रभु का पंथ निहारूँ।
कब मुझको आशीष मिलेगा
कब फिर से मैं खुद को पाऊँ
जीवन के अगणित दरवाजे
बोलो किससे बाहर आऊँ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जुलाई, 2021
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