दीवाना।
कहा कुछ भी नहीं लेकिन ये कब अफसाना बन बैठा।।
तुम्हीं आते हो नजर मुझको के इन कलियों नजारों में
तुम्हारी खुशबू है फैली इन फिजाओं में बहारों में
जो यहाँ तुम हो शमा इक तो मैं भी परवाना बन बैठा
ना जाने कब तेरी नजरों का मैं दीवाना बन बैठा।।
तुम्हारी चाहतों का दीपक जलाकर दिल में बैठा हूँ
तुम्हारे स्वप्नों से मैं स्वप्न मिलाकर अपने बैठा हूँ
ये मेरा दिल भी जाने कब भरोसा तुमपे कर बैठा
ना जाने कब तेरी नजरों का मैं दीवाना बन बैठा।।
तुम्हीं से हो शुरू तुम तक ये कहानी मेरी जाती है
मेरी हर साँस की सरगम बस तुम्हारे गीत गाती है
तुम्हीं हो इस साँस की वीणा तुम्हें धड़कन बना बैठा
ना जाने कब तेरी नजरों का मैं दीवाना बन बैठा।।
कहूँ अब और क्या तुमसे के फकत इतनी ही कहानी है
कि अब तुमसे ही मेरे जीवन की दरिया में रवानी है
जो तुम सागर की लहर हो तो किनारा मैं भी बन बैठा
ना जाने कब तेरी नजरों का मैं दीवाना बन बैठा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29मई, 2021
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