रुकूँ यहाँ मैं किसकी खातिर।

रुकूँ यहाँ मैं किसकी खातिर।

कितने ही पल बीत गए हैं
तुमसे अब तक मिल ना पाया
भाव हृदय के रीत गए सब
लेकिन कुछ भी कह ना पाया
भावों का अभिप्राय नहीं जब
कहूँ यहाँ मैं किसकी खातिर
अपनेपन का भाव नहीं जब
रुकूँ यहाँ मैं किसकी खातिर।।

कलुष भावना के प्रतिफल से
रीत रहा है जीवन घट ये
और थपेड़ों से लहरों के
क्षीण हो रहा सरिता तट ये
तटबंधों का मोह नहीं जब
बँधूं यहाँ मैं किसकी खातिर
अपनेपन का भाव नहीं जब
रुकूँ यहाँ मैं किसकी खातिर।।

मैं प्यासा हूँ संबंधों को
इस जग में कुछ पहचान मिले
भले नहीं कुछ मिले किसी को
पर रिश्तों को सम्मान मिले
रिश्तों के मोती फीके जब
गुहुँ उन्हें मैं किसकी खातिर
अपनेपन का भाव नहीं जब
रुकूँ यहाँ मैं किसकी खातिर।।

बिना स्नेह के मधुवन में 
कभी पुष्प नहीं खिला करते
बिना प्रेम के जीवन में भी
कभी गीत नहीं सजा करते 
गीत लिखे जब अर्थहीन हों
फिर उन्हें लिखूँ किसकी खातिर
अपनेपन का भाव नहीं जब
रुकूँ यहाँ मैं किसकी खातिर।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        07जून, 2021
        हैदराबाद



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