उन राहों पर क्या जाना।
बीत चुकी जो बातें अब तक फिर से क्यूँ दुहराते हो।।
तुम क्या जानो कैसे मैंने खुद को पुनः संभाला है
कदम कदम पर जख्म पिये तब जाकर खुद को पाला है
अब जो सँभला हूँ तो फिर से मुझको क्यूँ बहकाते हो
दर्द सजा कर थाल में पुनः तुम पास मिरे क्यूँ लाते हो।।
कितनी मुश्किल से भूला मैं तुमसे जो भी घाव मिले
बहुत पुकारा था तुमको पर बीच राह तुम छोड़ चले
छोड़ चले जब बीच राह, क्यूँ फिर से मुझे बुलाते हो
दर्द सजा कर थाल में पुनः तुम पास मिरे क्यूँ लाते हो।।
दूर बहुत हो गयीं याद जो उनसे फिर अब क्या लेना
तुमसे जो कुछ पाया था अब वापस तुमको क्या देना
जो कुछ तुमसे मिला मुझे अब उनसे दिल बहलाने दो
दर्द सजा कर थाल में पुनः तुम पास मिरे क्यूँ लाते हो।।
राहें जो हो गयीं अलग अब उनपर फिर से क्या जाना
बहुत मिले थे घाव वहाँ अब नया घाव फिर क्यूँ पाना
नहीं रहा जब कोई रिश्ता कैसी आस बँधाते हो
दर्द सजा कर थाल में पुनः तुम पास मिरे क्यूँ लाते हो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13जून, 2021
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