चक्रव्यूह में सच।

चक्रव्यूह में सच।  

सच खड़ा है आज कटघरे झूठ ने ऐसे पाँव पसारे
जो कुछ बीती है लम्हों पर कोई कैसे उसे बिसारे।।

चक्रव्यूह ऐसा रच डाला
शापित सारे शब्द हुए
और दिखाया उनको ऐसे
विचलित सारे अर्थ हुए
भावों में भी अंतर आया बिखरे सारे मरम बिचारे
सच खड़ा है आज कटघरे झूठ ने ऐसे पाँव पसारे
जो कुछ बीती है लम्हों पर कोई कैसे उसे बिसारे।।

बहकी बहकी बातें भी जब
झूठ गवाही देती हैं
सिंहासन तक शोर मचाती
नहीं सुनाई देती है
मर्माहत होकर तब लम्हें सोचें किसको आज पुकारें
सच खड़ा है आज कटघरे झूठ ने ऐसे पाँव पसारे
जो कुछ बीती है लम्हों पर कोई कैसे उसे बिसारे।।

आरोपों के ओछेपन से
सच की राह मिटाते हैं
कदम कदम पर झूठ गढ़ रहे
कैसा खेल रचाते हैं
झूठ को अगणित पथ मिलते पर सच का पंथ कौन बुहारे
सच खड़ा है आज कटघरे झूठ ने ऐसे पाँव पसारे
जो कुछ बीती है लम्हों पर कोई कैसे उसे बिसारे।।

अँधियारे की पंचायत में
पर सच कैसे रोकोगे
दीपक की लौ रोक सके ना
सूरज को क्या रोकोगे
पथ के सारे अँधियारे को सूरज ने है आज बुहारे
सत्य उतना ही मुखर हुआ झूठ ने जितना पाँव पसारे
पर लम्हों पर जो कुछ बीती कोई कैसे उसे बिसारे।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21जून, 2021



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