मौन मुसाफिर मेले में।
इक मौन मुसाफिर मैं भी हूँ।
इन राहों में भीड़ बहुत है
कहने को तो नीड़ बहुत है
बहुत दूर तक सफर घनेरे
मंजिल तक कितने हैं फेरे।
इन फेरों के चक्रव्यूह में
संग संग सबके मैं भी हूँ
इस दुनिया के मेले में
इक मौन मुसाफिर मैं भी हूँ।।
इच्छाओं का भार लिए सब
मंजिल मंजिल भटक रहे हैं
कुछ को छाँव मिली राहों में
कुछ तापों में चिटक रहे हैं।
धूप छाँव के खेल में घिरा
छोटी अभिलाषा मैं भी हूँ
इस दुनिया के मेले में
इक मौन मुसाफिर मैं भी हूँ।।
होंगे सबके लाखों सपने
है अपना बस अरमान यही
रहती दुनिया के गीतों में
हो छोटा सा ही नाम सही।
आशाओं के इस मेले में
इक दीप जलाए मैं भी हूँ
इस दुनिया के मेले में
इक मौन मुसाफिर मैं भी हूँ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15 मई, 2021
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