मन होना नहीं उदास यहां।
मन होना नहीं उदास यहां
हमने वो पल भी देखा है।
औरों की बातें क्या करना
अपनों का छल भी देखा है।।
कुछ धूल उड़ी थी इस पथ में
जिसको तुम शायद भूल गए
इक धुंध था छाया अंतस में
खुद अपना रस्ता भूल गए।
आज चले हो जिस पथ में
हमने वो पथ भी देखा है।
औरों की बातें क्या करना
अपनों का छल भी देखा है।।
अधर खुले पर, कुछ कह न सके
कहे बिना भी रह न सके
कहने-सुनने की पीड़ा में
अश्रु थमे, पर रुक न सके।
आंसू के उलझन को मैंने
नैनों में पल पल देखा है।
औरों की बातें क्या करना
अपनों का छल भी देखा है।।
मुक्त करो इस दिल को अपने
क्यूँ हरपल बांधे रहते हो
खुली हवा में जीने दो अब
क्यूँ दर्द में डूबे रहते हो।
इन भावों से निकला जो भी
उसने ही कल देखा है।
औरों की बातें क्या करना
अपनों का छल भी देखा है।।
अब राहों से नजर हटा लो
छोड़ गए जो, क्या आएंगे
मुड़कर भी ना देखा जिसने
गीत सुहाने क्या गाएंगे।
गहरे-गहरे घावों को भी
वक्त से भरते देखा है।
औरों की बातें क्या करना
अपनों का छल भी देखा है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15अक्टूबर,2020
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