व्यथा।

व्यथा।   

जब रात के आगोश में
भोर कोई पल रहा था
सो रहा था जग जहाँ पर
मौन कोई चल रहा था।।

नींद पलकों पर रुकी थी
स्वप्न ड्योढ़ी पर खड़े थे
भावनाओं के समर में
शब्द पर पहरे बड़े थे।
रात की तन्हाइयों में
दीप चुप चुप जल रहा था।
सो रहा था जग जहाँ पर
मौन कोई चल रहा था।।

रात की अपनी व्यथा है
औ दिवस की है कहानी
बीच में पिसती रही है
जाने कितनी जिंदगानी।
है सदी का घाव जिसको
वक्त पल पल सिल रहा था
सो रहा था जग जहाँ पर
मौन कोई चल रहा था।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02जून, 2021

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