अनुभव।

अनुभव।   

ढूँढ़ते हो क्यूँ सुखन बस उम्र के ही गाँव में
आओ मिल बैठो घड़ी भर जिंदगी की छाँव में।।

जो वहाँ पर दर्द है तो खुशियों का भी तो राज है
कट रही है जिंदगी उन्हीं बादलों की छाँव में।।

जब से छूटी है जमीं छूटी हैं गलियाँ गाँव की
दर्द गाँवों का बढ़ा है देखा जो छाले पाँव में।।

जिन नन्हें कदमों की धमक से डोलते थे रास्ते
अब ढूँढ़ते हैं इक सफर वो इस नए बदलाव में।।

भूख का मतलब यहाँ पर बतलायेगी वो जिंदगी
जिसने खुद को है तपाया धूप के इस गाँव में।।

उमर का वो मोड़ अब भी है वहीं पहले जहाँ था
जिसने कभी चलना सिखाया आँचलों की छाँव में।।

फिर चलो बैठे वहाँ और खुद से ही बातें करें
राह भी शायद मिले उन्हीं बरगदों की छाँव में।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जून, 2021

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