उम्र का सफर।
ये दिन तुम पर भी है आना
गुजर रहा मैं जिन राहों पर
इक दिन तुमको भी है जाना।।
उम्र से अपनी होड़ मची है
कदम कदम पर डोर जुड़ी है
चला जा रहा हूँ राहों पर
मुड़ा जहाँ पर छोर मुड़ी है।
मेरे बालों की चाँदी में
छुपा जहाँ का मुक्त खजाना
गुजर रहा मैं जिन राहों पर
इक दिन तुमको भी है जाना।।
माथे पर ये खिंची लकीरें
और चेहरों की रेखाएँ
पल पल कहती एक कहानी
अनुभव की गाती गाथाएं।
माथे की सिलवट से ही
मैंने जग को है पहचाना
गुजर रहा मैं जिन राहों पर
इक दिन तुमको भी है जाना।।
माना मेरे दाँत गिर रहे
और कमर में दर्द उठ रहा
अब पैरों में भी कंपन है
और आंखों से कम दिख रहा।
तन की सुंदरता से ज्यादा
मन को मैंने है पहचान
गुजर रहा मैं जिन राहों पर
इक दिन तुमको भी है जाना।।
रात दिवस का खेल सभी है
एक उगा तो एक ढली है
माना अलग अलग राहें हैं
इक दूजे से सभी मिली हैं।
मिली जुली इन्हीं राहों पर
जीवन का है ताना बाना
गुजर रहा मैं जिन राहों पर
इक दिन तुमको भी है जाना।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30मई, 2021
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