दिल का दर्द।
पलकों से सागर बहता है
जब चोट हृदय पर लगती है
औ दंश हजारों सहता है
जब मन के भीतर शब्दों का
इक सागर मंथन करता है
तब दर्द उमड़ कर जगता है
दिल खुद से बातें करता है।।
अपने जब नाते तोड़ चलें
औ बीच राह जब छोड़ चलें
जब उम्मीदें बेमानी हों
जब बीती सभी कहानी हों
जब नींद आँख को छोड़ चले
सपने भी पलकें छोड़ चलें
मन गीत नया फिर रचता है
दिल खुद से बातें करता है।।
विरह वेदना के सागर में
अंतस का दीपक रोता है
जब चोट कहीं भी लगती है
और दर्द हृदय में होता है
जब शब्दों की फुलवारी से
कोइ मौन शब्द बिछड़ता है
तब पीड़ा सहने की खातिर
दिल खुद से बातें करता है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13मई, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें