कहाँ ठिकाना।
पर तुझे कहाँ है जाना
कहो मुसाफिर कहाँ ठिकाना।।
तुम चलो राहें चलेंगीं
तुम रुको राहें रुकेंगी
तेरे संग संग रास्ते भी
लिख रहे नूतन फसाना।
कहो मुसाफिर कहाँ ठिकाना।।
सूर्य, चंदा औ सितारे
चल रहे सफर में सारे
पूछते हैं आज तुझसे
कहो कहाँ तुझको जाना
कहो मुसाफिर कहाँ ठिकाना।।
भूल तुम कैसे गए वो
पंथ था तुमने चुना जो
कर स्वयं को दृढ़ प्रतिज्ञ तू
गढ़ अपना ताना बाना
कहो मुसाफिर कहाँ ठिकाना।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
06जून, 2021
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