उम्मीदों की लाली।
इक उम्मीदों की लाली
उदास दिवस रहेगा कब तक
क्यूँ रात रहेगी काली।।
देख रहा सूरज को मैं भी
हर रोज गगन में तपते
रातों को भी देखा हमने
बस सूरज को ही तकते।
रातों के सूनेपन की भी
करती किरणें रखवाली
मुक्त गगन में खोज रहा हूँ
इक उम्मीदों की लाली।।
शब्द शब्द अधरों से छनकर
गीत सुनहरे बन जाते
भावों का परिधान पहनकर
रूप मनहरे बन जाते।
मनहर गीतों ने महकाई
है मन उपवन की डाली
मुक्त गगन में खोज रहा हूँ
इक उम्मीदों की लाली।।
ढूँढ़ रहा भावों में जीवन
भटक रहा मारा मारा
घनी अँधेरी इन रातों में
किरणें ही बनीं सहारा।
रातों के इस सूनेपन ने
किरणों से आशा पाली
मुक्त गगन में खोज रहा हूँ
इक उम्मीदों की लाली।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
31मई, 2021
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