नई पीढ़ी के गीत लिखें।
नव पीढ़ी के गीत लिखें नई चेतना आज जगाएँ।।
गली मुहल्लों चौराहों पर
कब तक ये आँखें तरसेंगी
कब इनको सम्मान मिलेगा
कब ये खुलकर के बरसेंगी।
इनको अपने हृदय लगा इनको फिर जीना सिखलाये
नव पीढ़ी के गीत लिखें नई चेतना आज जगाएँ।।
कदम कदम पर चीख उठ रही
नैतिकता अब कहीं गिर रही
घुट घुट जीता आज चमन क्यूँ
संस्कारों की नींव हिल रही
शब्द बिखरने से पहले सबको उन्नतशील बनायें
नव पीढ़ी के गीत लिखें नई चेतना आज जगाएँ।।
वेद, पुराणों उपनिषदों के
ज्ञान नहीं धूमिल हो जाये
गुरुकुल ने जो पाठ पढ़ाया
पाठ नहीं धूमिल पड़ जाए
ग्रंथों के पन्ने पलटें फिर गीता को हम अपनाएँ
नव पीढ़ी के गीत लिखें नई चेतना आज जगाएँ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04जुलाई,2021
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