संगिनी।

संगिनी।   

रीत निभाने चली संगिनी
भावों का विन्यास लिए
उर में अपने मधुर स्वप्न ले
खुशियों का आकाश लिए।।

छोटे छोटे पल की सारी
यादों को अनुशासित कर
अपने हृद के मृदु भावों को
दूजे में विस्थापित कर
मन में भरकर सपन सुहाने
पलकों में मधुमास लिए
रीत निभाने चली संगिनी
भावों का विन्यास लिए।।

सखियाँ छूटी गलियाँ छूटी
अल्हड़पन की बतियाँ छूटी
खेल खिलौने हुए पुराने
बीती सारी बतियाँ छूटी
नूतन शब्दों की आहट ले
प्रीत रीत का अनुप्रास लिए
रीत निभाने चली संगिनी
भावों का विन्यास लिए।।

जीवन के हर इक पथ पर 
एक दूजे संग चलना है
फूल मिले या काँटे पथ में
हँसकर आगे बढ़ना है
एक हाथ कर्तव्य निभाते
दूजा मधु आकाश लिए
रीत निभाने चली संगिनी
भावों का विन्यास लिए।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25मई, 2021


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