स्वप्न है जो प्यार तो गीत कैसे गुनगुनाऊँ।
स्वप्न तेरा प्यार है तो गीत कैसे गुनगुनाऊँ।।
है यहाँ पर कौन जिसके पलकों में ना स्वप्न आया
है यहाँ पर कौन वो जिसे प्यार का ना शब्द भाया
कौन सा है पुष्प बोलो कभी टूट कर खिलता यहाँ
जब भी गिरे शाखों से पत्ते फिर वहाँ मिलते कहाँ
टूट कर संभला हूँ कैसे दास्ताँ कैसे सुनाऊँ
बंद है जो द्वार बोलो पास तेरे कैसे आऊँ।।
रात की नाकामियों का दंश सुबहों ने है झेला
सितारों की इस भीड़ में भी चाँद हुआ क्यूँ अकेला
चाँद के एकाकीपन को अब कौन समझेगा यहाँ
जागती उस रात का मरम अब कौन बोलेगा यहाँ
क्या हुआ था उस घड़ी अब कैसे मैं तुमको बताऊँ
बंद हैं जो द्वार बोलो पास तेरे कैसे आऊँ।।
स्वप्न जो ये प्यार है तो गीतों में मैं क्या कहूँगा
साथ तेरा जो ना पाया गीत बोलो क्या रचूँगा
खोल कर अपना हृदय बोलो किसको दिखलाऊँ यहाँ
बात जो बीती हृदय पर अब किसको बतलाऊँ यहाँ
तुम खड़े जिस राह बोलो तुमको मैं कैसे मनाऊँ
बंद हैं जो द्वार बोलो पास तेरे कैसे आऊँ
स्वप्न तेरा प्यार है तो गीत कैसे गुनगुनाऊँ।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22जून, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें