अपने राम को ध्याऊँ
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।
साँस-साँस में नाम जपूँ मैं अब और न कुछ मैं सोचूँ,
नैन तिहारा रूप सजाऊँ अब और न कुछ मैं देखूँ।
कण-कण में प्रभु रूप बसत है तिन में ही शीश झुकाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।
जीवन एक समंदर अपना है तेज बड़ी ये धारा,
जीवन के इस महा सिंधु में बस राम हि खेवनहारा।
धार-धार में प्रभु को पूजूँ मैं पग-पग शीश नवाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।
लोभ मोह से मुक्त बने मन प्रभु भीतर हो उजियारा,
ज्ञान-ध्यान की ज्योति जला दो चहुँओर मिटे अँधियारा।
वेद पुराण ग्रन्थ हो जीवन मैं तिन में ही रम जाऊँ,
त्याग दूँ सारे मोह जगत के बस मैं राम को ध्याऊँ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12 मई, 2025
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