प्रकृति का आलिंगन।
रुके रहे या बीत गए जीवन ने सब अपनाये हैं।।
है विस्तृत आकाश यहाँ पर और खुली राहें कितनी
दूर दूर तक फैलायी हैं किरणों ने बाहें अपनी
और पवन के मधुर गीत नव जीवन राग सुनाते हैं
आर पार के दृश्य सभी जन जन को बहलाते हैं
प्रकृति की आभा ने कितने सुंदर बाग सजाए हैं
नील गगन के छाँव तले पलकों ने स्वप्न सजाए हैं।।
किरणों संग खेलती लहरें छुपती हैं इतराती हैं
दूर क्षितिज पर गगन चूम कर अंजुली भर जल लाती हैं
लहरों के आँचल में लुक छिप सागर गीत सुनाता है
ओस फुहारों की शीतलता अंतस तक मदमाता है
मदमाते अंतस ने कितने सुंदर साज सजाए हैं
नील गगन के छाँव तले पलकों ने स्वप्न सजाए हैं।।
कितना सुंदर लगता जग जब खिलता धरती का आँगन
सरस भाव से लिपट रेशमी किरणें करतीं मन पावन
नभ में पंछी मुक्त विचरते पग पग करते अवलोकित
और धरा पर हरित पुष्प खिल करते सब तरु तृण शोभित
खिले पुष्प दूर क्षितिज तक अवनी का रूप सजाए हैं
नील गगन के छाँव तले पलकों ने स्वप्न सजाए हैं।।
मुक्त चित्त हो मुकुलों के मन भावों को करतीं विंबित
अरु सरिता तट पर किरण सुनहरी करतीं जल को स्पंदित
खग मृग वन्य पशु पक्षी सारे गुंजित करते नभ का स्वर
कलरव के मधुर स्वरों से मिट जाते शोकाकुल अंतर
प्रकृति के इस आलिंगन ने स्नेहिल भाव जगाए हैं
नील गगन के छाँव तले पलकों ने स्वप्न सजाए हैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
10जून, 2021
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