आषाढ़ की बूँदें।
जब बूँदें गिरी बरसात की
मन का भ्रमर मचल बोला
कामनाओं ने भी बात की।।
हवा का जोर संग संग
तन पर पड़ी बूँदों की लड़ी
भाव में श्रृंगार जागे
कामनाएँ भी खिल खिल पड़ीं।।
प्रेयसी भी मुक्त होकर
प्रिय से रात दिल की बात की
आषाढ़ के मौसमों में
जब बूँदें गिरी बरसात की।।
आज बूँदों से धरा की
फिर प्यास सदियों की बुझी है
बीज में फिर कोंपलें हैं
फिर आस खुशियों की जगी है।
बैल की घण्टियों ने फिर
गुनगुनाकर दिल की बात की
आषाढ़ के मौसमों में
जब बूँदें गिरी बरसात की।।
स्वप्न लाखों फिर जगे हैं
अरु भाव खुशियों के खिले हैं
नैन में उल्लास छाया
फिर झूमकर सब दिल मिले हैं।
मौसमों ने गीत छेड़ा
और शब्दों को जज्बात दी
आषाढ़ के मौसमों में
जब बूँदें गिरी बरसात की।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30जून, 2021
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