कैसे समझाओगे।
कैसे अब समझाओगे
भटक चुकी राहों को बोलो
क्या नूतन राह दिखाओगे।।
युगों युगों में लगकर तुमने
सुंदर जीवन निर्माण किया
औ कितनी ही आशाओं से
फिर उसमें नूतन प्राण दिया।
खग, मृग, और पशु पक्षी सारे
सब नव जीवन की आशा हैं
इक दूजे से सभी जुड़े हैं
जुड़ी सभी की अभिलाषा है।
अभिलाषा के मूल तत्व को
फिर फिर क्या बतलाओगे
नूतन जीवन रचने वाले
कैसे अब समझाओगे।।
गगन बनाई धरा बनाये
दरिया औ सागर मिलवाये
झील ताल और पर्वत कितने
झरने मीठे गीत सुनाए।
दिवस बनाई रात बनाये
ऋतुओं का मधुमास खिलाये
जन जन का जीवन पुलकित कर
उपवन का वनवास मिटाए।
घाव मिल रहे जो उपवन को
बोलो कैसे दिखलाओगे
नूतन जीवन रचने वाले
कैसे अब समझाओगे।।
पाप और पुण्य बनाकर के
जीवन को इक रूप दिया है
कभी दिए हैं छाँव कहीं पर
और कहीं पर धूप दिया है।
पर निज इच्छा की खातिर
गहन अंध में डूब रहे जो
प्रकृति के सभी उपहारों को
रह रह करके लूट रहे जो।
लूट रहे इन उपहारों को
फिर बोलो कौन बचाएगा
जो आवरण में छुप गये तुम
फिर दीपक कौन जलाएगा।।
गहन अंध में डूबे मन को
तुम ही राह दिखाओगे
जीवन रचने वाले बोलो
कैसे अब समझाओगे।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17मई, 2021
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