कौन खोजता।
शूल न होते पथिक पंथ में, फूलों का पथ कौन खोजता।।
इतना सहज नहीं रहता फिर
उन उम्मीदों से मिल पाना
धूप न होती जग में यदि तो
मुश्किल फूलों का खिल पाना
ताप न होते जीवन पथ में, छाँवों को फिर कौन पूछता
शूल न होते पथिक पंथ में, फूलों का पथ कौन खोजता।।
सुख ही सुख मिल जाए यदि तो
दुख का फिर अहसास कहाँ हो
इतना सहज रहा ये जग जो
दिल को दिल की आस कहाँ हो
दिल जो दिल से दूर रहा तो, पलकों से अश्रु कौन पोंछता
शूल न होते पथिक पंथ में, फूलों का पथ कौन खोजता।।
ग्रंथ लिखे ना जाते जग में
नैतिकता फिर मिलती कैसे
द्यूत रचा ना जाता यदि तो
भगवद्गीता मिलती कैसे
भगवद्गीता जो ना होती, सत्य पंथ फिर कौन बोलता
शूल न होते पथिक पंथ में, फूलों का पथ कौन खोजता।।
सुख शांती का मोल वहाँ है
आवाजों में शोर जहाँ हो
मधुवन मधुरिम होता तब है
बँधी प्यार की डोर जहाँ हो
जो ना बँधती डोर प्यार की, रिश्तों का मन कौन टोहता
शूल न होते पथिक पंथ में, फूलों का पथ कौन खोजता।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14जून, 2021
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