चेहरे अनजाने।
कौन यहाँ किसको पहचाने
भीड़ यहाँ पर लाखों की है
अपने कौन कौन बेगाने।
चेहरों पर जितने चेहरे हैं
भावों पर उतने पहरे हैं
कौन यहाँ पढ़ पाया इसको
हर शब्दों के अर्थ गहरे हैं।
कैसे हो विस्तार यहाँ अब
मन ही जब मन की ना माने।
रात परायी दिवस बेगाने
कौन यहाँ किसको पहचाने।।
कभी लिखो जो मुक्त हवायें
समझे कुछ घनघोर घटायें
कभी लिखा आँखों का पानी
कुछ ने समझा करुण कहानी
शब्द शब्द के भाव बहुत हैं
जो दिल भाए बस वो ही माने।
रात परायी दिवस बेगाने
कौन यहाँ किसको पहचाने।।
उगे सूर्य के साथ उगे हैं
ढले सूर्य के साथ ढले हैं
सबकी अपनी अलग कहानी
सुनी सुनाई नई पुरानी।
अलग आवरण अलग मुखौटे
दिल की बातें दिल ही जाने
रात परायी दिवस बेगाने
कौन यहाँ किसको पहचाने।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02जुलाई,2021
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