कविता में मन।

कविता में मन।  

तू मेरी कविता का धन है
तुझ पर मेरी कलम समर्पित
हर पन्नों पर बिंब तेरा है
तुझ पर मेरा सब कुछ अर्पित।

शब्द शब्द में भाव भरे हैं
औ पंक्ति पंक्ति जीवन मेरा
पृष्ठ पृष्ठ तू बढ़ी यहाँ पर
पुस्तक पर है प्रभाव तेरा।
तुझसे मैंने लिखना सीखा
तुझ पर मेरा भाव समर्पित
तू मेरी कविता का धन है
तुझ पर मेरी कलम समर्पित।।

कहीं रुकी जो राहें मेरी
तुमने ही राह दिखाया है
भटका जब भी कहीं मार्ग से
तुमने ही राह सुझाया है।
तुझसे मैंने जीना सीखा
तुझ पर मेरा जीवन अर्पित
तू मेरी कविता का धन है
तुझ पर मेरी कलम समर्पित।।

मुझको बस वरदान यही दो
जन भावों को लिखता जाऊँ
गीत लिखूँ मैं जन गण मन के
नवगीत नया रचता जाऊँ।
ऐसा कोई गीत लिखूँ मैं
जिससे जग हो सारा गुंजित
तू मेरी कविता का धन है
तुझ पर मेरी कलम समर्पित।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06जून, 2021

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