मलहम फिर क्या दे पाएँगे।
मलहम फिर क्या दे पाएँगे।।
व्यर्थ है अश्रु बहाना उनपर
छोड़ गए फिर क्या आएँगे
मुड़ कर भी ना देखा इक पल
साथ सफर में क्या जाएँगे
छोड़ चले जो बीच सफर में
पास तिरे फिर क्या आएँगे
जिन हाथों ने घाव दिए हैं
मलहम फिर क्या दे पाएँगे।।
नींद में तुझे छोड़ गए जो
सब सपनों को तोड़ गए जो
कुछ दूरी तक साथ चले फिर
बीच राह में छोड़ गए जो
जिनको तेरा साथ न भाया
गीत मिलन के क्या गाएँगे
जिन हाथों ने घाव दिए हैं
मलहम फिर क्या दे पाएँगे।।
जा पलकों के अश्रु से कह दो
व्यर्थ ना करें अपना जीवन
अवसादों में घिरकर अब वो
झुलसाए ना अपना मधुवन
जिन हाथों ने बाग उजाड़े
पुष्प खिलाने क्यूँ आएँगे
जिन हाथों ने घाव दिए हैं
मलहम फिर क्या दे पाएँगे।।
कितनी बार उठे हैं गिरकर
तब बचपन में चलना आया
कदम कदम पर सीख मिली जब
तब जाकर सच कहना आया
मीठा झूठ जिने भाता हो
वो कड़वा सच क्या पी पाएँगे
जिन हाथों ने घाव दिए हैं
मलहम फिर क्या दे पाएँगे।।
घने अँधेरों ने बोलो कभि
क्या सूरज का पथ रोका है
ऊँचे ऊँचे बंधों ने भी
कब नदिया का पथ रोका है
बन नदिया तू राह चला चल
बंधक सारे गिर जाएँगे
जिन हाथों ने घाव दिए हैं
मलहम फिर क्या दे पाएँगे।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08जून, 2021
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