रिश्तों का भँवर।

रिश्तों का भँवर।  

शाम के धुँधलके में कुछ निशाँ छिप गए
कभी हुए मुखर कहीं और कुछ चुप हुए।।

याद की गहराइयों में कुछ चुभे शूल से
अरु रास्तों में बिछे बन के कुछ फूल से
जो भी मिले राह में सीख कुछ दे गए
कभी हुए मुखर कहीं और कुछ चुप हुए।।

मटमैले रिश्तों ने कहानी कई गढ़ी
दर्द के प्रभाव से ही कुछ लिखी कुछ पढ़ी
जो पढ़े किताबों में शब्द सब मिट गए
कभी हुए मुखर कहीं और कुछ चुप हुए।।

वक्त से छूट कर भी कितने अलग हुए
रिश्तों के भँवर में हि कितने उलझ गए
कुछ चले दूर तलक और दूर कुछ हुए
कभी हुए मुखर कहीं और कुछ चुप हुए।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07जून, 2021



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