नूतन इतिहास रचना है।
साथ हमारे कौन चलेगा
नहीं जानने की चाहत है
साथ हमारे कौन पलेगा।
अनजानी उन राहों में भी
कुछ तो सत्य छिपा होगा
राह भले दुर्गम हो कितनी
मौन कोई चला तो होगा।
दुर्गम देख राह जो बदली
फिर बोलो के कौन चलेगा।
नहीं जानने की इच्छा है
साथ हमारे कौन चलेगा।।
अगणित प्रश्नों के नश्तर से
रुख अपना मोड़ नहीं सकता
नाकामी से डरकर के मैं
ये रस्ता छोड़ नहीं सकता।।
छोड़ दिया जो राहों को फिर
तुम ही बोलो कौन चलेगा
नहीं जानने की इच्छा है
साथ हमारे कौन चलेगा।।
माना राहें ये मुश्किल हैं
पर इनपर तो चलना होगा
लोग चले हों पदचिन्हों पर
पदचिन्ह नया रचना होगा
इतिहासों को दोहराएँ तो
इतिहास नया कौन रचेगा
नहीं जानने की इच्छा है
साथ हमारे कौन चलेगा।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14मई, 2021
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