जिसने पथ की पीर समझ ली।

जिसने पथ की पीर समझ ली।   

अँधियारे कितने ही गहरे
दीपक लेकिन कब बुझते हैं
जिसने पथ की पीर समझ ली
बाधाओं से कब रुकते हैं।।

आँधी हो या तूफान चले
या घनघोर प्रलय आ जाये
भले शिलाएँ रस्ता रोकें
या लहरें अंबर तक जाएं
वीर वही जो अपने बल से
एक सुनहरा पथ लिखते हैं
जिसने पथ की पीर समझ ली
बाधाओं से कब रुकते हैं।।

बहती नदिया की धारा ने
अपना पथ है स्वतः बनाया
बंधक जो भी मिले पंथ में
सबने आगे शीश झुकाया
नदिया की लहरों के आगे
बड़े बड़े परबत झुकते हैं
जिसने पथ की पीर समझ ली
बाधाओं से कब रुकते हैं।।

जीवन एक संघर्ष यहाँ है
प्रतिपल बाजी अपनों की
कदम कदम पर व्यूह रचेंगे
अरु दाँव लगेंगे सपनों की
इन दांवों को जिसने समझा
वो कहाँ कभी रोके रुकते हैं
जिसने पथ की पीर समझ ली
बाधाओं से कब रुकते हैं।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28जून, 2021






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