प्रारंभ क्या अरु अंत क्या।
प्रारंभ क्या अरु अंत क्या
है अभी प्रारंभ ये और
दूर मंजिल है तेरी
औ तेरे इन काँधों पे ही
उम्मीद हैं कितनी बड़ी
जो शिथिल हैं तेरे कदम तो
जीत का फिर ये मंत्र क्या
यदि थक गए इस पंथ में तो
प्रारंभ क्या अरु अंत क्या।।
मुश्किलों से हारकर कभी
जो पंथ से विचलित हुआ
अरु छोड़ कर मँझधार में
ये नाव जो विस्मृति हुआ
है कर्मपथ से जो भी विचला
योगी क्या और संत क्या
यदि थक गए इस पंथ में तो
प्रारंभ क्या अरु अंत क्या।।
इस पंथ में वो पंथी सफल
जो मुस्कुरा करके चले
बंधों में अवरोधों में भी
जो राह खुद अपनी गढ़े
जो गढ़ सके ना स्वयं से पथ
फिर फूल का भी पंथ क्या
यदि थक गए इस पंथ में तो
प्रारंभ क्या अरु अंत क्या।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11जून, 2021
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