मेरी सभी व्यथाएँ तुम्हें कहानी लगती हैं।
जाने मेरी सभी व्यथाएँ तुम्हें कहानी लगती है
मैंने जो भी कही कथाएँ तुम्हें पुरानी लगती हैं।।
तुम संग मेल हुआ था जब, तब तुम भी खोये खोये थे
अंक तुम्हारा भी सूना था कुछ पाए ना खोये थे
नया सहारा मिलते ही वो छाँह पुरानी लगती है
जाने मेरी सभी व्यथाएँ तुम्हें कहानी लगती हैं।।
बाधाओं के चक्रव्यूह से तुम कैसे निकले भूल गए
साथ तुम्हारा छोड़ चले सब कैसे सँभले भूल गए
सँभले हो अब तो क्यों वो बात पुरानी लगती है
जाने मेरी सभी व्यथाएँ तुम्हें कहानी लगती हैं।।
बार बार पंथ छला गया फिर भी है विश्वास किया
जग से भले दूर हुए हम पर तुमसे ही आस किया
मेरी सारी बात तुम्हें अब नादानी लगती है
जाने मेरी सभी व्यथाएँ तुम्हें कहानी लगती है।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
20जून, 2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें