भाव नहीं पढ़ सकते।

भाव नहीं पढ़ सकते।  

लाख करो तुम जतन यहाँ अब
मेरे भाव नहीं पढ़ सकते
होंगे कितने गीत गढ़े पर
मेरे गीत नहीं गढ़ सकते।।

सरिता के तट सा है जीवन
साथ चले पर मिल ना पाए
लहरों ने जितना ही चाहा
उतनी बदली यहाँ दिशाएँ।
सरिता की कल कल धारा को
मौन किनारे कब पढ़ सकते
लाख करो तुम जतन यहाँ अब
मेरे भाव नहीं पढ़ सकते।।

मैं उश्रृंखल मुक्त पवन हूँ
अरु तुम अनुशाषित प्रेम पंथ
यहाँ वहाँ बंजारा मैं तो
अरु तुम हो स्थापित पुण्य ग्रंथ
बीत गयी सब बात पुरानी
नूतन भाव नहीं गढ़ सकते
लाख करो तुम जतन यहाँ अब
मेरे भाव नहीं पढ़ सकते।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       29जून, 2021


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