बाँसुरी की तान।

बाँसुरी की तान।  

बाँसुरी की तान
कानों में मधुर रस घोलती
गीत रचती प्रीत के
नवगीत मृदु मधु घोलती।

भोर का प्रारंभ इसमें
साँझ की गोधूलि बेला
अंक में अनुराग इसके
तान ने मधुमास घोला
शब्द देती भाव को अरु
आँख लुक छिप बोलती
बाँसुरी की तान
कानों में मधुर रस घोलती।।

बाँस की ये बाँसुरी
गीत गाती तान से
मोहती अंदाज से ये
जब भी बजती शान से
भाव को आकार देती
गुनगुनाकर बोलती
बाँसुरी की तान
कानों में मधुर रस घोलती।।

देव का श्रृंगार बन कर
उंगलियाँ नचती रही
शब्दों को सम्मान देकर
गीत नव रचती रहीं
गीत भावों के बनाकर
मृदु राग हिय हिय घोलती
बाँसुरी की तान
कानों में मधुर रस घोलती।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04जुलाई, 2021



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