थोड़ा अहसास करा दो।
बस तुम इतना आस धरा दो
अपने होने का तुम मुझको
बस थोड़ा अहसास करा दो।।
ये भौतिक उपहार सभी हैं
जैसे बरखा रुत का पानी
जड़ जग के व्यवहार सभी हैं
बिन भावों के जैसी वाणी।।
मेरे भावों में बस जाओ
मन का मेरे मान बढ़ा दो
अपने होने का तुम मुझको
बस थोड़ा अहसास करा दो।।
करी परिक्रमा डगमग पग से
इसमें मेरा दोष नहीं है
मेरे अंतस को झकझोरा
क्या तुमको अफसोस नहीं है।।
अनुभवहीन नहीं मैं इतना
इतना बस विश्वास दिला दो
अपने होने का तुम मुझको
बस थोड़ा अहसास करा दो।।
अपना कोई गीत सुना दो
जीवन भर जिसको मैं गाऊँ
बस इतना उपकार करो तुम
इस जग से परिचित हो जाऊँ।।
हुआ योग्य जब यहाँ जगत में
बस इतना आभास करा दो
अपने होने का अब मुझको
बस थोड़ा अहसास करा दो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30मई, 2022