कहाँ छुपे हो कान्हा।
इक आवाज लगाई है
कहाँ छुपे हो या जाओ अब
चुभती ये तन्हाई है।।
मन मेरा तुम पर ही ठहरा
तुमसे मिला सहारा है
इस अनजानी सी दुनिया में
तुम बिन कौन हमारा है।।
तुमसे सब रिश्ते नाते हैं
तुमसे ही रुसवाई है
कहाँ छुपे हो या जाओ अब
चुभती ये तन्हाई है।।
इस जीवन के हर इक पल को
मैंने अन्तरहीन किया
रागों-अनुरागों को सारे
तेरे ही आधीन किया।।
बिखर न जाये जीवन कान्हा
कैसी अगन लगाई है
कहाँ छुपे हो या जाओ अब
चुभती ये तन्हाई है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16मार्च, 2022
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