ले मिलन की आस मन में है राह भी खुद चल पड़ी
दूर देखा जब क्षितिज पर मृदु कामनाएं थी खड़ीं
कल्पना करने लगे नव पंथ खुशियों के बुहारे
चाँदनी फैली गगन में रूप का पथ है सँवारे।।
चन्द्र किरणों ने गगन से तप्त उर में प्रीत भर दी
तारों की परछाईयों अंक में नव रीत भर दी
व्योम से छनकर गिरे फिर गात पर स्नेहिल फुहारे
चाँदनी फैली गगन में रूप का पथ है सँवारे।।
अवरोध का फिर प्रश्न क्या मधुमास की जब रात हो
क्या अँधेरा क्या उजाला जब गुनगुनाती रात हो
भाव मन में क्यूँ रुके फिर गात बोलो क्या विचारे
चाँदनी फैली गगन में रूप का पथ है सँवारे।।
चाँदनी निखरी हृदय में व्योम का अहसास पाया
गात का उपवन खिला अरु प्रीत ने श्रृंगार पाया
कह रहीं पलकें झपक कर प्रीत अधरों पर खिला रे
चाँदनी फैली गगन में रूप का पथ है सँवारे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25मार्च, 2022
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