भाव को संवेदनाएँ।

भाव को संवेदनाएँ।  

आज प्राची के क्षितिज से
रोशनी की भावनायें
आ रही हिय को लुभाती
भाव को संवेदनाएँ।।

कुछ कहा कवि के हृदय ने
लेखनी ये चल पड़ी फिर
पृष्ठ पर कुछ भाव अंकित
मौन हँस कर कह पड़ी फिर।।

कह रही साँसें प्रखर हो
गूँजती अनुरंजनाएँ
आ रही हिय को लुभाती
भाव को संवेदनाएँ।।

सौम्य सुंदर है सुघड़ है
इस हृदय को दिख रहा जो
अब नहीं मरुथल यहाँ पर
फिर कहो क्या खल रहा है।।

अंक में मन को सँभाले
थाल भर कर अर्चनायें
आ रही हिय को लुभाती
भाव को संवेदनाएँ।।

पार बादल दिख रहा है
देख लो सुंदर सवेरा
दीप्त हों जब भाव हिय के
रोकेगा फिर क्या अँधेरा।।

अंक में भरती किरण धन
हर रहीं अब वेदनायें
आ रही हिय को लुभाती
भाव को संवेदनाएँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07अप्रैल, 2022

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