युद्ध की विभीषिका।
जैसे नस में खून दौड़ रहा सबके तानाशाही के।।
एक छोर पर इक दुनिया है
दूजी बैठी अलग छोर पर
धमकी देती एक खड़ी है
दूजी भी ताकत के जोर पर
दोनों के संवादों ने कहो कैसी आग लगाई है
जैसे नस में खून दौड़ रहा सबके तानाशाही के।।
अपने शर्तों पर हर कोई
दूजे को आदेश दे रहा
ऐसा लगता है वो मानो
दुनिया को संदेश दे रहा
सुनो, संदेशों में दोनों के शब्द भरे रुसवाई के
जैसे नस में खून दौड़ रहा सबके तानाशाही के।।
मानवता की बातें सारी
बेमानी सी हुई जा रहीं
स्वार्थ शिखर पर बैठी दुनिया
पल पल जैसे गिरी जा रही
लगता जैसे होड़ लगी है ताकत के आजमाइश के
जैसे नस में खून दौड़ रहा सबके तानाशाही के।।
नहीं कोई क्या बहुव्यापी
जिसको इस विष का भान नहीं
कलयुग के देवों को सच का
क्या सचमुच कुछ अनुमान नहीं
ऐसे ही कुछ और चला तो दृश्य दिखेंगे तबाही के
सदियाँ बिलखेंगी रह रह कर लम्हों में तन्हाई के।।
कैसे कैसे दृश्य दिख रहे देखो यहाँ तबाही के
जैसे नस में खून दौड़ रहा सबके तानाशाही के।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02मार्च, 2022
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