घर में धर्म कहाँ से होगा।
जब जब धर्म प्रभावित होगा
सोचो सत्कर्म कहाँ से होगा
जिस घर सीता को न्याय नहींउस घर में धर्म कहाँ से होगा।।
आवाजों के केंद्रबिंदु में
क्यूँ आवाज दबी रह जाती
ऐसा क्यूँ लगता है जग में
आह कंठ में दब रह जाती
नहीं मुखर होंगी जब आहें
फिर मुक्त कंठ कहाँ से होगा
जिस घर सीता को न्याय नहीं
उस घर में धर्म कहाँ से होगा।।
चहुँ ओर चीखती आवाजें
कब तक मौन धरे बैठें सब
चीर खींचता दुःशाशन है
क्यूँ कर मौन धरे बैठे सब
जब तक न चीर सुरक्षित होगा
सोचो शर्म कहाँ से होगा
जिस घर सीता को न्याय नहीं
उस घर में धर्म कहाँ से होगा।।
अगणित शत्रु नजर गड़ाये
देख रहे हैं सुख शांती पर
अवसादों में स्वयं गड़े हैं
फैलाते मन में भ्रांती पर
जब कटुता का सागर विशाल
मन कहो नर्म कहाँ से होगा
जिस घर सीता को न्याय नहीं
उस घर में धर्म कहाँ से होगा।।
अब जितने शत्रु सीमा पर हैं
उससे ज्यादा भीतर बैठे
राष्ट्र भावना छलने खातिर
कदम कदम पर देखो ऐंठे
दीमक का साम्राज्य बढ़ा तो
सच्चा कर्म कहाँ से होगा
जिस घर सीता को न्याय नहीं
उस घर में धर्म कहाँ से होगा।।
अँधियारे में एक बिन्दु सी
दीपक रेख बना बैठी है
कैसे कह दूँ इस जीवन में
आशायें घबरा बैठी हैं
आशायें जब मुक्त नहीं हों
फिर सत्कर्म कहाँ से होगा
जिस घर सीता को न्याय नहीं
उस घर में धर्म कहाँ से होगा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22फरवरी, 2022
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