कैसे कहो अत्याचार रोकूँ।
खल रहे पल-पल हृदय को
सामीप्यता के निज पलों में
छल रहे पल-पल समय को
पल रहे निज अंक में कैसे कहो ये व्यवहार रोकूँ
सोच में प्रतिपल हृदय कैसे कहो अत्याचार रोकूँ।।
अब प्यालियाँ कितनी अधर के
सामने आ रुक गये हैं
वो अश्रु नैनों से जो निकले
नैन में ही छुप गये हैं
छुप गये निज नैन में कैसे आँसुओं की धार रोकूँ
सोच में प्रतिपल हृदय कैसे कहो अत्याचार रोकूँ।।
कहो, तुमने क्या पाया यहाँ
वो, जो मिला हमको नहीं
अब जो भी हृदय भाव पाले
उससे गिला हमको नहीं
द्वेष जब कुछ भी नहीं कैसे कहो फिर प्रतिकार रोकूँ
सोच में प्रतिपल हृदय कैसे कहो अत्याचार रोकूँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19अप्रैल, 2022
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