प्रतीक्षा।
सत्य सनातन निष्ठा पर तेरे हम तो हैं बलिहारी
सदियों से कर रही प्रतीक्षा पलकें जिस के दरसन की
है समीप वो पल अपने होगी पूर्ण प्रतीज्ञा सारी।।
पलकों पर कितने ही सावन आये आकर बीत गए
पलकों के निस पनघट के कितने ही आँसू रीत गए
पर विश्वास नहीं खोये इक बस उम्मीद रही बाकी
अनुमानों में समय चक्र के आखिर हम तो जीत गए।।
तुम आये पलकें भर आयीं मन को भी विश्राम मिला
तपती धरती पर बूँदों से जैसे है आराम मिला
पूर्ण प्रतीक्षा हुई समय की द्वार पलक के खुले सभी
जैसे शबरी के भावों को घट-घट में श्री राम मिला।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18मई, 2022
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