उमर भर राह तकती रही जिन्दगी।

उमर भर राह तकती रही जिन्दगी।  

वक्त की रेत पर धुँधलके कुछ निशाँ
उमर भर राह तकती रही जिन्दगी।।

कुछ कहे कुछ सुने कुछ लिखे कुछ पढ़े
भाव के गांव में गल्प कितने गढ़े
कुछ मिले कुछ खिले कुछ ढले भाव में
कुछ क्षितिज पर राह देखते हैं खड़े।।

आस की आस में यूँ सजी बन्दगी
उमर भर राह तकती रही जिन्दगी।।

लिये चलते रहे भावनायें मधुर
चाह गढ़ती रही कामनायें मधुर
कुछ मिले राह में चाह कुछ की रही
भाव हिय ने गढ़े हैं सदा ही मधुर।।

कामनायें मधुर चाहती बन्दगी
उमर भर राह तकती रही जिन्दगी।।

क्या कहा अनकहा कौन किसको कहे
सोचती जिन्दगी कौन कैसे सहे
कहते हैं रास्ते ये सियासी कथन
जब डँसे जिन्दगी दूर कैसे रहें।।

धड़कनों में तड़पती रही बन्दगी
उमर भर राह तकती रही जिन्दगी।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अप्रैल, 2022

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